हम लोगों कि तरह मुस्तैन भी एक आम इंसान था। उसके भि छोटे छोटे बच्चे थे। उसको भी अपने बाल बच्चों कि परवरिश करनी थी। भला उसे क्या पता था के दुनिया में उसको भी ग़ुलाम बन कर ही जीना पड़ेगा। न तो उसे ईमानदारी के बदले मौत क्यों मिलती।
घर की बात करें तो एक छोटा सा कमरा है। लाइट का कोई इंतज़ाम नहीं है। कमरे के आगे छोटा सा आँगन भी है। एक कोने में मुस्तैन की बीवी फूल बानो बैठी है। जो भी हुआ है वह उसको अभी सपना ही समझ रही है। उसको गहरा सदमा पहुंचा है। मुस्तैन के माँ -बाप बूढ़े हो चुके हैं। चार बच्चे हैं मुस्तैन के जिनमें सबसे बड़ा बच्चा आठ साल का है।
बात 5 मार्च की रात कि है। मुस्तै अपने चार साथियों के साथ शरीफ गढ़ गया था। सोचा था के वह बच्चों के लिए एक सेहतमंद भैंस लेकर आएगा। बच्चे जी भर के दूध पिएंगे तो माँ-बाप का कलेजा ठंडा हो जाएगा। लेकिन क़िस्मत को शायद कुछ और ही मंज़ूर था। भैंस न मिली तो मुस्तैन ने दो बैल खरीद लिए। अगर मुस्तैन के और साथियों की भी बात करें तो कुल मिलकर पांच बैल खरीदे गए जो तक़रीबन 45000 रुपयों के होंगे।
जब लौटने का वक़्त हुआ तो किराए पर महिंद्रा पिक उप भी लेली। फिर क्या था दिल को तसल्ली दी क्यों की बच्चों के लिए भैंस नहीं मिल पाई थी। लेकिन फिर भी एक मुस्कान लिए घर की तरफ चल दिए। बच्चे भी अपने बाबा के आने की राह देख रहे होंगे। मुझको देखते ही बच्चों की सारी बेचैनी दूर हो जाएगी। और भी अच्छे अच्छे ख्याल मुस्तैन के दिल में चल रहे थे। पर यह क्या पता था की अब बच्चों को देखना नसीब ही न होगा।
ये ख्याल चल ही रहे थे कि अचानक ड्राइवर ने गाड़ी रोकली। मुस्तैन ने घबराकर पूछा क्या हुआ ड्राइवर साहब। ड्राइवर ने घबराकर कहा ''भाई सामने कुछ पुलिसवाले हैं और रसता रोक रख है। लेकिन साथ में 7-8 देशी मुश्टण्डे भी हैं। कुल मिलकर 12-13 लोग होंगे। ड्राइवर ने कहा इनको शायद ''गौ रक्षक ''भी कहते हैं। कुछ फिरौती-विरौती मांगेंगे खामखां। यह कहकर ड्राइवर ने गाड़ी मोड़ ली।
पर तक़दीर का फैसला लिखा जा चूका था। ज़ालिमों ने सड़क पर बड़े-बड़े इंगल लगा दिए थे। जैसे ही गाड़ी मुड़ी फट से ही गाड़ी का टायर पंचर हो गया। अभी इससे समले न थे की कि सामने से अँधा धुंध फायरिंग शुरू हो गयी। समझ में ही नहीं आ रहा था की क्या हो रहा है। क़ानून तो बेगुनाहों को बचाता है लेकिन ये हम पर बेवजह गोलियां क्यों बरसा रहे हैं। यह कैसे पुलिसवाले हैं। मुस्तैन को क्या पता था की उसका पाला क़ानून की वरदी पहन्ने वाले भाड़े के टट्टुओं से पड़ा है।
चारों तरफ से यही आवाज़ें आ रही थीं ''घेरलो-मरलो'' वगैरह वगैरह। उन गद्दारों के पास लोडेड हथियार थे। चला भी ऐसे रहे थे जैसे कोई बांसुरीवाला बांसुरी बज रहा हो। शायद इन लोगों से गोलियों का भी हिसाब न लिया जाता हो।
असलम मुस्तैन का दोस्त था जो उस रात भागकर घर पोहोंच गया था। अब वह भी औरों की तरह मुस्तैन के आने की राह देख रहा था। पर 5 दिन गुज़र गए अभी तक मुस्तैन नहीं आया। फूल बनो भी 5 दिनों से सो नहीं पायी थी। कैसे सो पाती पति ही पत्नि की दुनिया है। बच्चों कि भी हालत कुछ ऐसी ही थी। लेकिन वह अभी तक यही सोच रहे थे की पापा हमारे लिए बोहोत सारा सामन लेकर आएंगे। ख़ुशी से खिल उठते थे पर उनकी मुस्कान भी सूरज की तरह ढलती जा रही थी। मुस्तैन के माँ-बाप की बेचैनी का भी आलम न था। जब रहा न गया तो रिपोर्ट लिखवाडाली। हैबियस कॉर्पस फाइल करा दी गयी।
कोर्ट ने मुस्तैन को तलब किया। एक महीना हो चूका था पर मुस्तैन का कोई अता-पता न था। फिर वह खबर आई जिसका जिसका फैसला तक़दीर पहले ही फैसला कर चुकी थी।
ताहिर हसन को कुरुक्षेत्र बुलाया गया। एक लाश मिली थी किसी नाले में। ताहिर हुसैन बूढ़े बाप थे मुस्तैन के। सोचो ज़रा क्या बीती होगी उस वक़्त बूढ़े बाप के दिल पर। लेकिन हम ठहरे घमंडी इंसान। यह छोटी-छोटी बातें तो रोज़ होती ही रहती हैं। हमें इनसब फ़ालतू बातों से क्या मतलब।
ताहिर हसन ने उस लाश को देखा। वह और कोई नहीं उनके कलेजे का टुकड़ा मुस्तैन ही था। अरे ज़रा सोचो किन आँखों से एक बूढ़े बाप ने अपने बेटे को देखा होगा वो भी मारा हुआ। ऐसी हालत में के लाश भी गल गई हो। ज़रा सोचो उन मासूम बच्चों के बारे में जो ज़िन्दगी भर अपने बाप के आने की राह देखते रहेंगे। उस बूढी माँ का क्या होगा जो मुस्तैन के बिना खाना ही न खाती थी। और फूल बनो उसकी तो ज़िन्दगी ही तबाह हो गयी थी। कौन उसके बच्चों को पालेगा अब।
''मुस्तैन की लाश एक महीने बाद 2 अप्रैल को कुरुक्षेत्र के नाले में मिली थी।''
मुस्तैन को इसलिए मार दिया गया क्योंकी उसके पास ''गऊ माता ''यानि गाए होने का शक था। कल अखलाक को इसलिए मारा था क्योंकी उसके पास ''बीफ़'' होने का शक था। यह बात हिन्दू-मुस्लिम की ही नहीं इंसानियत की भी है। अगर यही इंसानियत है तो में ऐसी इंसानियत की हरगिज़ ग़ुलामी नहीं करूँगा। में करूँगा ऐसी इंसानियत से बग़ावत। में लिखूंगा मुस्तैन और अखलाक के लिए जब तक मेरी रगों में जान है। आज में एलान करता हूँ की में एक ''बाग़ी'' हुँ।
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