Friday, 27 May 2016

बाग़ी





''ज़बान बाहर निकली हुई थी। शरीर पर गहरे घाव थे। ऐसा लगता था उसे बोहोत बुरी तरह पीटा गया हो। मालूम होता था के यह काम किसी इंसान का नहीं बल्कि जानवर का है । उसके सीने और कमर पर चाकुओं के घाव भि थे। बॉडी का रंग भी काला पड़ गया था। बोहोत ही बेदरदी से मार गया था उसको।''

हम लोगों कि तरह मुस्तैन भी एक आम इंसान था। उसके भि छोटे छोटे बच्चे थे। उसको भी अपने बाल बच्चों कि परवरिश करनी थी। भला उसे क्या पता था के दुनिया में उसको भी ग़ुलाम बन कर ही जीना पड़ेगा। न तो उसे ईमानदारी के बदले मौत क्यों मिलती।

घर की बात करें तो एक छोटा सा कमरा है। लाइट का कोई इंतज़ाम नहीं है। कमरे के आगे छोटा सा आँगन भी है। एक कोने में मुस्तैन की बीवी फूल बानो बैठी है। जो भी हुआ है वह उसको अभी सपना ही समझ रही है। उसको गहरा सदमा पहुंचा है। मुस्तैन के माँ -बाप बूढ़े हो चुके हैं। चार बच्चे हैं मुस्तैन के जिनमें सबसे बड़ा बच्चा आठ साल का है।

बात 5 मार्च की रात कि है। मुस्तै अपने चार साथियों के साथ शरीफ गढ़ गया था। सोचा था के वह बच्चों के लिए एक सेहतमंद भैंस लेकर आएगा। बच्चे जी भर के दूध पिएंगे तो माँ-बाप का कलेजा ठंडा हो जाएगा। लेकिन क़िस्मत को शायद कुछ और ही मंज़ूर था। भैंस न मिली तो मुस्तैन ने दो बैल खरीद लिए। अगर मुस्तैन के और साथियों की भी बात करें तो कुल मिलकर पांच बैल खरीदे गए जो तक़रीबन 45000 रुपयों के होंगे।

जब लौटने का वक़्त हुआ तो किराए पर महिंद्रा पिक उप भी लेली। फिर क्या था दिल को तसल्ली दी क्यों की बच्चों के लिए भैंस नहीं मिल पाई थी। लेकिन फिर भी एक मुस्कान लिए घर की तरफ चल दिए। बच्चे भी अपने बाबा के आने की राह देख रहे होंगे। मुझको देखते ही बच्चों की सारी बेचैनी दूर हो जाएगी। और भी अच्छे अच्छे ख्याल मुस्तैन के दिल में चल रहे थे। पर यह क्या पता था की अब बच्चों को देखना नसीब ही न होगा।

ये ख्याल चल ही रहे थे कि अचानक ड्राइवर ने गाड़ी रोकली। मुस्तैन ने घबराकर पूछा क्या हुआ ड्राइवर साहब। ड्राइवर ने घबराकर कहा ''भाई सामने कुछ पुलिसवाले हैं और रसता रोक रख है। लेकिन साथ में 7-8 देशी मुश्टण्डे भी हैं। कुल मिलकर 12-13 लोग होंगे। ड्राइवर ने कहा इनको शायद ''गौ रक्षक ''भी कहते हैं। कुछ फिरौती-विरौती मांगेंगे खामखां। यह कहकर ड्राइवर ने गाड़ी मोड़ ली।

पर तक़दीर का फैसला लिखा जा चूका था। ज़ालिमों ने सड़क पर बड़े-बड़े इंगल लगा दिए थे। जैसे ही गाड़ी मुड़ी फट से ही गाड़ी का टायर पंचर हो गया। अभी इससे समले न थे की कि सामने से अँधा धुंध फायरिंग शुरू हो गयी। समझ में ही नहीं आ रहा था की क्या हो रहा है। क़ानून तो बेगुनाहों को बचाता है लेकिन ये हम पर बेवजह गोलियां क्यों बरसा रहे हैं। यह कैसे पुलिसवाले हैं। मुस्तैन को क्या पता था की उसका पाला क़ानून की वरदी पहन्ने वाले भाड़े के टट्टुओं से पड़ा है।

चारों तरफ से यही आवाज़ें आ रही थीं ''घेरलो-मरलो'' वगैरह वगैरह। उन गद्दारों के पास लोडेड हथियार थे। चला भी ऐसे रहे थे जैसे कोई बांसुरीवाला बांसुरी बज रहा हो। शायद इन लोगों से गोलियों का भी हिसाब न लिया जाता हो।

असलम मुस्तैन का दोस्त था जो उस रात भागकर घर पोहोंच गया था। अब वह भी औरों की तरह मुस्तैन के आने की राह देख रहा था। पर 5 दिन गुज़र गए अभी तक मुस्तैन नहीं आया। फूल बनो भी 5 दिनों से सो नहीं पायी थी। कैसे सो पाती पति ही पत्नि की दुनिया है। बच्चों कि भी हालत कुछ ऐसी ही थी। लेकिन वह अभी तक यही सोच रहे थे की पापा हमारे लिए बोहोत सारा सामन लेकर आएंगे। ख़ुशी से खिल उठते थे पर उनकी मुस्कान भी सूरज की तरह ढलती जा रही थी। मुस्तैन के माँ-बाप की बेचैनी का भी आलम न था। जब रहा न गया तो रिपोर्ट लिखवाडाली। हैबियस कॉर्पस फाइल करा दी गयी।

कोर्ट ने मुस्तैन को तलब किया। एक महीना हो चूका था पर मुस्तैन का कोई अता-पता न था। फिर वह खबर आई जिसका जिसका फैसला तक़दीर पहले ही फैसला कर चुकी थी।

ताहिर हसन को कुरुक्षेत्र बुलाया गया। एक लाश मिली थी किसी नाले में। ताहिर हुसैन बूढ़े बाप थे मुस्तैन के। सोचो ज़रा क्या बीती होगी उस वक़्त बूढ़े बाप के दिल पर। लेकिन हम ठहरे घमंडी इंसान। यह छोटी-छोटी बातें तो रोज़ होती ही रहती हैं। हमें इनसब फ़ालतू बातों से क्या मतलब।

ताहिर हसन ने उस लाश को देखा। वह और कोई नहीं उनके कलेजे का टुकड़ा मुस्तैन ही था। अरे ज़रा सोचो किन आँखों से एक बूढ़े बाप ने अपने बेटे को देखा होगा वो भी मारा हुआ। ऐसी हालत में के लाश भी गल गई हो। ज़रा सोचो उन मासूम बच्चों के बारे में जो ज़िन्दगी भर अपने बाप के आने की राह देखते रहेंगे। उस बूढी माँ का क्या होगा जो मुस्तैन के बिना खाना ही न खाती थी। और फूल बनो उसकी तो ज़िन्दगी ही तबाह हो गयी थी। कौन उसके बच्चों को पालेगा अब।
''मुस्तैन की लाश एक महीने बाद 2 अप्रैल को कुरुक्षेत्र के नाले में मिली थी।''


मुस्तैन को इसलिए मार दिया गया क्योंकी उसके पास ''गऊ माता ''यानि गाए होने का शक था। कल अखलाक को इसलिए मारा था क्योंकी उसके पास ''बीफ़'' होने का शक था। यह बात हिन्दू-मुस्लिम की ही नहीं इंसानियत की भी है। अगर यही इंसानियत है तो में ऐसी इंसानियत की हरगिज़ ग़ुलामी नहीं करूँगा। में करूँगा ऐसी इंसानियत से बग़ावत। में लिखूंगा मुस्तैन और अखलाक के लिए जब तक मेरी रगों में जान है। आज में एलान करता हूँ की में एक ''बाग़ी'' हुँ। 


Sunday, 15 May 2016

In Solidarity with Palestine

                                                       फलस्तीन(Palestine) के लियें।।।।।।





होलोकॉस्ट(Holocaust) के बारे में अक्सर लोग जानते ही हैं। चलो मान लेते हैं होलोकॉस्ट भूतकाल की एक बोहोत ही दर्दनाक घटना थी और इसमें बोहोत से बेगुनाह ज़ीउस [Jews] को हिटलर दुआरा मरवाया गया था। लोगों को आजतक इस बात का दुःख है और रहेगा।

वैसे तो यह दुन्या का अब तक का सबसे बड़ा झूट है।

लेकिन मैने लोगों को कभी फलस्तीन(Palestine) के मुसलमानों के लिए दुःख प्रकट करते हुए नहीं देखा। क्या वह लोग इंसान नहीं हैं। या सिर्फ ज़ीउस(Jews) के मरने पर ही लोगों को दर्द होता है। हजारियों बेगुनाह बच्चों,औरतो और मर्दों को इजराइल(Israel) की फ़ोर्स क़त्ल कर चुकी है और यह तमाशा जारी ही है। यह भी तय नहीं की कब तक जारी रहेगा। क्या यह किसी होलोकॉस्ट(Holocaust) से कम है।

मेरे कहने का मकसद यह है की ईरान(Iran) दुअरा विश्व इस्तर पर होलोकॉस्ट(Holocaust) कार्टून एक्सहिबिशन कराई जा रही है। मैँ बिना किसी डर के इसे सपोर्ट करता हुँ। अगर इससे जेउस(Jews) और उनके चाहनेवालों को ठेस पोहोंची हो तो झंडू बाम लगाकर सो जाएँ मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।

शर्म करो इस्राएलियों(Israelis) तुम नाज़ियों(Nazis) से भी बत्तर हो।

#stopbrutalkillings #comeandsupportPalestine #freePalestine

Friday, 13 May 2016

दोसती


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साहिल रोज़ की तरह आज भी जल्दी सो कर उठा। लोग उसके बारे में अच्छी तरह जानते थे। वह एक बोहोत ही मेहनती लड़का था। क्लास में हमेशा पहले नंबर पर आता। सब से अच्छी तरह बात करता। और अब तो साहिल जवान हो चूका था। उसने अपना दाखिला कॉलेज में ले लिया था। तो वह वक़्त के हिसाब से जल्दी उठता और कॉलेज पोहोंच जाता।

हमेशा की तरह आज भी साहिल जल्दी उठा। रासते में एक पेड़ के पास जाकर खड़ा हो गया। यह पेड़ कॉलेज के रस्ते में पड़ता था। पता नहीं वह उस पेड़ से किया बातें करता। पर ऐसा लगता था के यह पेड़ उसका दोस्त हो। एक जिगरी दोस्त। साहिल उससे घंटो बातें करता।उस पेड़ से अपनी सारी बातें शेयर करता। कभी उसके सामने रोता और कभी हँसता। लेकिन भला पेड़ तो पेड़ है वह कभी जवाब न देता।

इसी तरह वक़्त गुज़रता रहा पर साहिल ने अपनी बातें कभी ख़त्म नहीं की। वह वक़्त पर उस पेड़ के पास ज़रूर आता और अपनी सारी बातें सुनाता। लोग अब साहिल को आशिक़ और दीवाना कहने लगे। भला इतना क़ाबिल लड़का ये क्या करता है - एक पेड़ से बातें। पर उस पेड़ की दीवानगी ने साहिल को एक मज़बूत इंसान बन दिया था। साहिल लोगों के हक़ के लियें लड़ता। वह मज़लूमो को बताता के डरो मत में तुम्हारे साथ हु-आओ और ज़ुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाओ।वह ग़रीबों का मसीहा बन चूका था। उसकी शोहरत दूर दूर तक फैलने लगी। 
लेकिन साहिल का पागलपन भी वक़्त के साथ बढ़ता रहा। अब वह पेड़ की डालियों को पकड़ कर हिलाता उनसे कहता के मेरा जवाब दो। वह पेड़ के आगे गिड़गिड़ाता। पेड़ के पत्तों को खींचता और कहता मेरा जवाब दो। ना जाने साहिल के दिल में क्या था। क्या उसे समझ नहीं आता होगा कि वह एक पेड़ से बात करता है। लेकिन समझ आने के बावजूद भी वह एक पेड़ से जवाब मांगता।

हर सुबह साहिल एक नयी उम्मीद लेकर उठता। वह सोचता के शायद आज पेड़ उसकी बातों का ज़रूर जवाब देगा।

आखिर एक सवेरा हुआ। आज हवाएं भी कुछ अलग सी चल रही थीं। आज मौसम बोहोत सुहाना था। आज परिंदे भी कुछ अलग गा गा कर उड़ रहे थे। ऐसा लगता था मानो आज ही पहला सवेरा हुआ हो। साहिल के दोस्त पेड़ के सामने आज भीड़ लग रही थी। आज उस पेड़ ने जवाब दिया था। आज उसकी हर टहनी पर साहिल लिखा हुआ था। आज उसकी हर शाख साहिल  पुकार रही थी। हमेशा की तरह उस पेड़ पर फूल तो थे मगर आज उन पर साहिल का नाम लिखा हुआ था। दूर से देखो तो ऐसा लगता था के पेड़ ने ही अपने आप को साहिल में बदल लिया हो।

लेकिन बोहोत देर हो चुकी थी। साहिल ज़िन्दगी के सामने हार गया। आज उसकी मौत आई थी। लोगों की भीड़ पेड़ के सामने इसलिए थी क्युकी आज साहिल को वहां दफ़नाया  जा रहा था। 
पर दोस्तों साहिल हारा नहीं उसने मरकर भी लोगों को बता दिया कि
वह हमेशा ज़िंदा रहेगा क्युकी आज उसकी बातें पेड़ को समझ आ गई थीं।  

Friday, 6 May 2016

एक सोच

मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं कि आजकल इंसान की कीमत उसके काम और अखलाक से नहीं बल्कि उसकी दौलत और शोहरत से है।
यह आजकल के इंसान की एक निहायत ही नीच सोच है। लेकिन फिर भी हमें बोहोत सारे ऐसे लोग मिल ही जाते हैं जो हमें समझ लेते हैं। इसलिए में तो यही कहूंगा के अपने आप को कभी कमज़ोर मत समझो बल्कि आखरी दम तक लड़ो। लड़ाई तुम्हारी एक सच्चे मक़सद के लिए होनी चाहिए वरना झूठ के लियें तो आजकल रोज़ लोग लड़ते हैं।

More on Venn Diagrams for Regression (Summary)

More on Venn Diagrams for Regression Volume 10 | Number 1 | May 2002 p.1-10                                                     Pete...